Wednesday, October 3, 2018 - 18:31

चंद्रपुर महाराष्ट्र / दिनांक 12 मार्च 2018 को जिला चंद्रपुर में वीर शहीद बाबूराव शेडमाके की 185 वीं जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई । वीर शहीद बाबूराव शेडमाके का जन्म 12 मार्च 1833 को एक गोंड परिवार में पोलमपल्ली, जिला चांदा मे हुआ । उनकी प्रारंभिक शिक्षा घोटुल संस्कार केंद्र में हुई । जिसमें उन्होंने गोंडी, हिंदी व तेलगु आदि भाषा का ज्ञान प्राप्त किया । उनके पिताजी द्वारा अंग्रेजी सीखने के लिए उन्हें रायपुर भेजा गया । 18 वर्ष की आयु में वह अपने गांव वापस लौटे और राज कुंवर के साथ उनका विवाह हुआ । सन 1854 मे चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आया । उसी समय वीर बाबुराव शेडमाके के द्वारा पहली बार 500 युवाओं को एकत्रित कर एक सेना बनाई गई और अंग्रेजों द्वारा की जा रही दमनकारी नीति के खिलाफ एवं जल, जंगल व जमीन को बचाने के लिए अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई चालु कर दी। चंद्रपुर डिस्ट्रिक्ट के डिप्टी कलेक्टर मिस्टर क्रिक्टन द्वारा वीर बाबुराव शेडमाके पर अलग अलग क्षेत्र की सेनाओं की सहायता से दो बार आक्रमण करवाया गया। लेकिन युवा साथियों की अगुवाई में दोनों ही बार वीर शहीद बाबुराव शेडमाके की विजय हुई और राजगढ़ एरिया पर कब्जा कर लिया । इस दो जीत से उत्साहित होकर वीर बाबुराव शेडमाके जी ने 29 अप्रैल 1854 मे अंग्रेजों के टेलीफोन केम्प पर आक्रमण कर दिया । जिसमें दो टेलीफोन ऑपरेटर मारे गए मिस्टर हाल एवं मिस्टर गार्टलैंड । लेकिन मिस्टर पीटर बच निकले और वह इसकी सूचना चंद्रपुर के डिप्टी कलेक्टर को दे दी । मिस्टर क्रिक्टन द्वारा वीर बाबुराव शेडमाके को गिरफ्तार करने के लिए षड्यंत्र रचा गया और वह अपनी कुटिल चाल चलते हुए सामंती व्यवस्था के तहत अहीर की जमींदारीनी रानी लक्ष्मीबाई की सहायता लेते हुए उन्हें गिरफ्तार करने मे सफल हो गया । 18 सितंबर 1858 को बाबूराव शेडमाके को अरेस्ट किया गया और चंद्रपुर जेल के सामने खुले मैदान मे पीपल के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटकाया गया। वह पीपल का पेड़ आज भी मौजूद हैं। ऐसा भी उल्लेख मिलता हैं कि यह आंदोलन 1857 की क्रांति का एक प्रेरणा स्रोत था। बावजूद इसके इतिहास के पन्नों पर वीर शहीद बाबूराव शेडमाके जीे को जितना स्थान मिलना चाहिए था, उतना मिला नहीं । उनके बलिदान को जो प्रसिद्धि मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। महाराष्ट्र के कुछ जिलों में समाज के कार्यकर्ताओं द्वारा पिछले कुछ समय से जरूर वीर शहीद बाबूराव शेडमाके की जयंती व स्मृति दिन मनाया जा रहा हैं। लेकिन शेष भारत में इस महानायक के बारे में कोई जानकारी नहीं है । भारत सरकार द्वारा भी 12 मार्च 2009 को उनकी स्मृति में एक स्टांप टिकट जारी करके इतिश्री कर लिया गया । देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाला सिर्फ आदिवासी समाज के लिए ही स्वतंत्रता सेनानी हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए । इसलिए देश के सभी लोगों के द्वारा उनकी जयंती व स्मृति दिन मनाया जाना चाहिए । जिस स्थान पर उनको फांसी दी गई थी ,उस स्थान को संरक्षित किया जा कर वहां पर उनका स्मारक बनाया जाना चाहिए । कहीं तो आदिवासी समाज के स्वतंत्रता सेनानी को चोर व डाकू की संज्ञा दी गई और कहीं तो उन्हें इतिहास में भुला दिया गया । इसलिए समाज के नौजवान साथी समाज का इतिहास खोज खोजकर निकाले और शोध कार्य में ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को लगने की आवश्यकता है । 12 मार्च 2018 को महाराष्ट्र के कई जिलों मे जगह जगह पर उनकी जयंती को मनाया गया । इसी कड़ी मे मूल, जिला चंद्रपुर, महाराष्ट्र में भी वीर शहीद बाबूराव शेडमाके की जयंती धूमधाम से मनाई गई ।
कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी समाज की गोंडियन संस्कृति के अनुसार पूजा अर्चना करते हुए की गई । शहीदों के चित्रों पर ताजे महुआ फूल की माला बनाकर चढ़ाई गई ।
कार्यक्रम की प्रस्तावना संतोष कर्नाके के द्वारा रखी गई । इस मौके पर एक नन्हीं सी बालिका लेखा केशव कोवे द्वारा ओजस्वी शब्दों में वीर शहीद बाबुराव शेडमाके के जीवन पर प्रकाश डाला गया एवं समाज के लोगों को नींद से जागने का संदेश दिया गया ।
इस अवसर पर राजकुमार पुराम (उप कार्यकारी अधिकारी जिला पंचायत गड़चिरोली), प्रोफेसर मुकेश पेंदाम, संतोष मसराम, मनोजसिंह गोंड मड़ावी द्वारा गोंडी संस्कृति व परंपरा पर प्रकाश डालते हुए प्रकृति के साथ उसका संबंध पर अपना उद्बोधन दिया गया ।
कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष अशोक भाई चौधरी महासचिव (आदिवासी एकता परिषद) द्वारा अपने उद्बोधन मे बताया गया कि आदिवासियों की समस्याओं को दूर करने के लिए हमें देशभर के आदिवासियों पर एक मंच पर आने की आवश्यकता है। इसलिए इसे गंभीरता से लेना होगा और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक आदि सभी क्षेत्रों में एक मजबूत नेतृत्व तैयार करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के बीच बीच में आदिवासी संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी दी गई ।
कार्यक्रम में महिलाओं एवं पुरुषों की भागीदारी लगभग बराबर थी ।
इस अवसर पर समाज की प्रतिभा गुलशन वासुदेव आतराम जो कि महाराष्ट्र राज्य की ओर से खो-खो में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाले है। उनका सम्मान किया गया । साथ ही कार्यक्रम में आए हुए अतिथियों को गमछा व झंडा देखकर सम्मान किया गया ।
जिस प्रकार बाबूराव शेडमाके जैसे महापुरुषों ने अपनी युवावस्था में ही समाज व देश की आजादी की लड़ाई लड़ी । उसी प्रकार आज भी समाज की असली आजादी के लिए समर्पित नौजवान साथियों की समाज को नितांत आवश्यकता है ।
कार्यक्रम का संचालन वासुदेव आतराम एवं आभार विलास अड़े द्वारा व्यक्त किया गया ।

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